पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/२४

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  • वीजक मूल

वर्मन देव औ दासा । रज सत तम गुण धरति है अकासा ॥ { साखी-एक अण्ड ओंकारते । सब जग भया पसार । - कहहिं कवीर स्व नारि राम की । अविचल पुरुप भतार ॥ Pallantanane रमैनी ॥ २८ ॥ ३ अस जोलहा काहु मर्म न जाना जिन्ह जगई. आनि पसारिनि ताना ॥ धरती प्रकाश दोउ गाड़ई खंदाया । चाँद सूर्य दोउ नरी बनाया ॥ सहस्र तार , ले पूरनि पूरी । अजहूँ विने कठिन है दूरी । कहहिं । कवीर कर्म से जोरी। सूत कुसूत विने भल कोरी · रमैनी ॥ २९ ॥ वज्रहुते तृण खिन में होई । तृणत वज्र करे पुनि सोई ।। निझरूनीरू जानि परिहरिया । कर्मक बाँधा। लालच करिया ॥ कर्म धर्म मति वुधि परिहरिया। । झुठा नाम साँचले धरिया॥ रज गति त्रिविधि कीन्ह ! प्रकाशा ।.कर्म धर्म बुद्धि केर विनाशा ॥ रविके उदय तारा भौ, छीना ॥ चर बीहर दूनों में ! waystorymartneryon e