पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

gaurum..............suurmuuuun.. बीजक मूल लीना ॥ विपके खाये विष नहिं जावे । गारुड़ सो जो मरत जियावे ॥ मावी-अलस जो लागी पलक में, पलमहि में इमिनाय । विपहर मंत्र न माने, (लो) नाल्ड काह करायं ॥ २० ॥ रमनी ॥ ३०॥ ग्रो भूले पठदर्शन भाई । पाखंड भेप रहा लपटाई॥ नीव शीव का प्राहि नसौना। चारिउ वेद चतुर्गुण . माना । जेनिधर्म का मर्म न जाना । पाती तोरि । देव घर आना । दवना मला चंपाके फूला ! मानहु जीव कोटि सम तूला ।। श्री पृथिवी के रोम * उचारे । देखत जन्म अापनो हारे । मन्मथ विंद करे असरारा । कल्पे विन्द खसे नहिं दारा ।। ताकर ! हाल होय अधचा । छो दर्शन में जैनि विगी। माखी-ज्ञान अमरपद वाहिर । नियरे ते है दरि ॥ जाननाफे निकट है । रहा नफल बट पूरि,॥ ३०॥ रमनी ॥ ३१॥ सुमृति पाहि गुणन के चीन्हा । पाप पुण्यको । मारग कीन्हा । सुमृति वेद पढ़े असरारा ! पाखंड !