पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/३३

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२३२ . बीजक मूल .. की कहानी ! निर्वक दूध कि सर्वक पानी ॥ रहिगी। पंथ थकित भौ पवना | दशों दिशा उजारि भौ । गवना ॥ मीन जाल भी इ संसारा । लोहकी नाव! पपाण को भारा ॥ खेवे सबै मर्म हम जानी। तेयो। कहें रहे उतरानी ॥ साखी-मछरी मुख जस केंचुवा । मुसवन महँ गिरदान । । सर्पन मांहि गहे जुआ । जात सयन को जान ॥ ४५ ॥ । रमैनी ॥४६॥ 1. विनसे नाग गरुड़ गलि जाई । विनसे कपटी श्रौ शत भाई ।। विनसे पाप पुण्य जिन्ह कीन्हा । बिनसे गुण निर्गुण जिन्ह चीन्हा ॥ विनसे अग्नि ! पवन औ पानी । विनसे सृष्टि कहाँलों गनी ॥ विष्णु लोक बिनसै छिनमाहीं । हों देखा परलय ! की छाँही ॥ साखी-मच्छरूप माया भई । जवरहिं खेले अहेर । हरिहर ब्रह्मा न ऊपरे । सुर नर मुनि केहिं कर ॥ ४६॥ रमनी ॥ ४७॥ - जरासिंधु शिशुपाल सँहारा । सहस्रार्जुन