पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/३५

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ramanand | ३४ : वीजक मूल . साखी-शेष प्रकी शेप सकरदी । मानहु वचन हमार । थादि अंत श्री युग युग । देखहु दृष्टि पसार ॥४८॥ रमनी ॥४९॥ दरकी बात कहो दरवेसा । बादशाह है कौने. मेसा ॥ कहाँ कूच कहाँ करें मुकामा । में तोहि । । पूछौं मुसलमाना । कोन सुरति को करों सलामा ॥ लाल जर्दकी नाना वाना। काजी काज करह तुम कैसा ।। घर घर जबह करावहु भैंसा। बकरी मुरगी किन्द फरमाया । किसके कहे तुम छुरी है चलाया ॥ दर्द न जानहु पीर कहावहु । वैता पनि । पदि जग भरमावहु ॥ कहहिं कबीर एक सैयद । कहावे । श्राप सरीखा जग कवुलावे । साखी-दिनको रहत हैं राजा । राति हनत हैं गाय । ____ यही खून वह पंदगी । क्योंकर खुसी खुदाय ।। ४९ ॥ . रमैनी ॥५०॥ कहइत मोहिं भयल युग चारी | समझत नाहिं मोर सुत नारी ॥ वंस आग लगि सहि । जरिया ॥ भरम भूलि नर धंधे परिया। हस्तिनि फंदे