पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • बीजक मूल

केकरि.चोरी । चोर एक मूसै संसारा । विरला जन

कोइ वूझन हारा॥ स्वर्ग पताल भूम्य लैवारी । एकै ।

'राम सकल रखवारी ॥ साखी-पाहन है है सब गये । विन भितियन के चित्र ॥ जासो कियेउ मिताइया । सो धन भया न हिन ॥५९॥ रमैनी ।। ६०॥

  • छाइहु पति छाइहु लबराई । मन अभिमान

टूटि तब जाई । जिन ले चोरी भिक्षा खाई । सो. .. विरवा पलुहावन जाई ।। पुनि संपति औ पतिको

  • धावे । सो विरवा संसार ले आवै॥
  • साखी-झूठ झूठाकै डारहू । मिथ्या यह संसार ।

तिहि कारण मैं कहत हो । जाते होउ उवार ॥ ६०॥ . रमैनी ।। ६१ ॥ धर्म कथा जो कहते रहई । लावरि नित उठि ? प्रातहि कहई ॥ लावरि विहाने लावरि संझा । एक लावरि वसे हृदया मंझा ॥ रामहु केर मर्म नहिं , जाना । ले मति ठानिनि वेद पुराना ॥ वेदहु केर कहल नहिं करई । जरतई रहे सुस्त नहिं परई ॥ ॥