पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/४८

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वीजक मूल रमैनी ॥ ७४ ॥ तहिया (होते) गुप्त अस्थूल न काया । न ताके सोग ताकि पै मायाकँवल पत्र तरंग एक माहीं । * संगहि रहे लिप्त पै नाहीं ॥ श्रास श्रोस अंडमहँ: रहई । अगनित अंड न कोई कहई ॥ निराधार अधार ले जानी । राम नाम ले उचरी वानी॥ धर्म, कहै सब पानी अहई । जातिके मन पानी अहई ॥ ढोर पतंग सरे परियारा।तेहि पानी सब करै अचारा फंद छोड़ि जो बाहर होई बहुरि पंथ नहि । जो है सोई॥ साखी- भरम का वांधा यह जग, कोइ न करे विचार ॥ (एक) हरिकी भक्ति जाने बिना, (भौ) चूड़ि मुवा संसार॥ रमैनी ।। ७५॥ तेहि साहिब के लागहु साथा । दुइ दुख मेटि के । होहु सनाथा ॥ दशरथ कुल अवतरि नहिं आया। नहिं लंकाके राव सताया ॥ नहिं देवकी के गर्भ- हिं पाया । नहीं यशोदा गोद खिलाया ॥ पृथ्वी Akahakikiki