पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/५८

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www RAR RAKHELARAKA RMAKAL वीजक मूल प्यारा । तुरुक कहें रहिमाना । अापुस में दोउ.लरि .लरि मूये । मर्म न काहू जामा ॥ घर घर मंतर देत फिरतु हैं । महिमा के अभिमाना ॥ गुरु सहित शिष्य सब बूड़े । अंतकाल पछताना॥ कहहिं कबीर सुनो हो सन्तो। ई सव भरम भुलाना । केतिक कहौं कहा नहिं माने । सहजै सहज समाना ॥॥ शब्द ॥ ५॥ संतो अचरज एक भी भारी । कहीं तो कोई पतियाई । एकै पुरुप एक है नारी । ताकर करहु । विचारा ॥ एकै अंड सकल चौरासी । भरम भुला । संसारा ॥ एकै नारी जाल पसारा । जगमें भया। | अंदेशा ॥ खोजत खोजत काहु अंत न पाया। ब्रह्मा विष्णु महेशा ॥ नाग फाँस लिये घट भीतर।। । मूसेनि सब जग झारी ॥ ज्ञान खड्ग बिनु सब जग! 1 जूझै । पकरि न काहू पाई। आपै मुल फूल फुल- । वारी ! आपहिं त्रुनि चुनि खाई॥कहहिं कबीर तेई । जन उबरे । जहि गुरु लियो जगाई ।। Primaryte