पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/६५

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  • वीजक मूल

- शब्द ॥१४॥

रामुरा संशय शांठि न छूटे । ताते पकरि

पकरि यम लुटै ॥ होय कुलीन मिस्कीन कहावे । तूं योगी सन्यासी ।। ज्ञानी गुणी सूर कवि दाता। ये पति किनहु न नासी ॥ सुमृति वेद पुराण पढ़े सब ! अनुभव भाव न दरसे । लोह हिरण्य होय घों कैसे । जो नहिं पारस परसे । जियत न तरेह मुये का तरिहौ । जियत हि जो न तरे ॥ गहि पर- तीत कीन्ह जिन्ह जासो । सोइ तहाँ अमरे,। जो। कछु कियउ ज्ञान अज्ञाना । सोई समुझ सयाना ॥ कहहिं कबीर तासों क्या कहिये ! जो देखत दृष्टि - भुलाना ॥ १४ ॥ शब्द ॥ १५ ॥ रामुरा चली बिन बनमा हो॥घर छोड़े जात जोलहा हो । गज नौ गज दस गज उनइस की। पुरिया एक तनाई ॥ सात सूत नौ गंड वहत्तर ।। पाट लागु अधिकाई ॥ तापट तुला तुले नहीं गज है T mrriver