पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/६६

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५ वीजक मूल

· न अमाई । पैसन सेर अढ़ाई ॥ तामें घटे बढ़े रतियो। नहीं । कर कच करे गहराई। नित उठि वेठि खसम । सो वरखस । तापर लागु तिहाई ॥ भीगी पुरिया । ५ काम न आवे । जोलहा चला रिसाई ॥ कहहिं कबीर सुनोहो संतो । जिन्ह यह सृष्टि बनाई ।। छाड़ पसार ई 1 राम भजु वौरे । भवसागर कठिनाई ॥ १५ ॥ .: शब्द ॥ १६ ॥ ___रामुरा झीझी जंतर वाजे । कर चरण विहूना नाचै ॥ करविनु वाजे सुनै श्रवण विनु । श्रवण श्रोता सोई ॥ पाठन सुवस सभा बिनु अवसर । बूझो मुनि जन लोई । इन्द्रिय विनु भोग स्वाद । जिभ्या विनु । अक्षय पिंड बिहूना । जागत चोर मंदिर तहाँ मृसै । खसम अछत घर सूना ॥ वीज ! विनु अंकुर पेड़ विनु तरिवर। विनु फूले फल फरिया। वांझ कि कोख पुत्र अवतरिया । बिनु पग तस्विर चढ़िया ॥ मंसि बिनु दाइत कलम बिनु कागदं ।।

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