पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/७०

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  • बीजक मूल

हंकारा । अंतकाल मुख फाँके छारा॥दुखित सुखित द्वै कुटुम जेवावे । मरण वार' एकसर दुख पावे ॥ कहहिं कवीर यह कलि है खोटी । जो रहे करवाई सो निकरै टोटी ।। शब्द ॥ २२ ॥ ___ अवधू छाडहु मन विस्तारा । सो पद गहो जाहि ते सदगति । पार ब्रह्म सो 'न्यारा ।। नहिं महादेव नहिं महम्मद । हरि हजरत . कुछ नाहीं ॥ आदम ब्रह्मा नहिं तव होते । नहीं . धूपो नहीं छांही ॥ असी सहस पैगम्बर नाही। सहस अठासी मूनी ॥ चंद्रसूर्य तारागन नाहीं । मच्छ कच्छ नहिं दूनी ॥ वेद कितेव सुमृति नहिं । । संजम । नहिं जीवन परछाई ॥ वंग निमाज कलमा नहिं होते । रामहु नाहिं खुदाई ॥ आदि अंत मन मध्य न होते अातश पवन न पानी॥लख चौरासी जीव जंतु नहिं । साखी शब्द न वानी ॥ कहहिं । कवीर सुनो.हो अवधू । आगे करहु विचारा॥पूरण ब्रह्म कहाँते प्रगटे | कृत्रिम कीन्ह उपराजा ॥ २२ ॥