पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/७१

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७२ वीजक मूल छानवे । ये कल काहु न जाना ।। अालम दुनियाँ सकल फिरि अाये । ये 'कल उहे न पाना ॥ तजिई , करिगह जगतउ चाये । मनमो मन न समाना॥ 'कहहिं कवीर योगी यो जंगम | फीकी उनकी आसा ॥ रामहिं नाम स्टै ज्यों चातृक । निश्चय 'भक्ति निवासा ॥ शब्द ॥ २७ ॥ + भाई रे अद्भुत रूप अनूप कथ्यो है । कहाँ तो।

  • को पतियाई ॥ जैह २ देखो तहँ २ साई सब घट

रहा समाई ।। लक्ष विनु सुख दरिद्र विनु दुख । नींद है

  • बिना सुख सोवे ।। जस दिनु ज्योति रूप बिनु ।

आशिक । ऐसो रतन बिहूना रोवे ॥ भ्रम विनु । गंजन मणि बिनु नीरख रूप बिना बहु रूपा॥ थिति बिनु सुरति रहस विनु अानंद । ऐसो चरित अनूपा ॥ कहहिं कवीर जगत हरि मानिक । देखो चित अनुमानी ॥ परिहरि लाख लोभ कुटुम तजि।। भजहु न शारंगपानी ॥ २७ ॥ न