पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

1.७८ बीजक मूल पा॥गि ठगि मूल सबनको लीन्हा । राम ठगोरी काहु न चीन्हा । कहहिं कबीर ठगसो मन माना। गई ठगोरी जर ठग पहिचान ॥३६॥ . . शब्द ॥ ३७॥ हस्टिंग टगत सकल जग डोले । गौन करत मोसे मुखहु न बोले ।। बालापनके मीत हमारे । हमहि तजि कहाँ चलेउ सकारे । तुमहिं पुरुप में नारि तुम्हारी । तुम्हरी चाल पाहनहु ते भारी ॥ माटि को देह पवन को शरीर । हरि ठग ठगसोई डरे कबीरा ।। ३७ ॥ शब्द ।। ३८॥ ____हरि विनु भर्म विगुनि गंदा ॥ टेक ॥ जहँ जहँ गयउ अपुन पो खोयेउ । तेहि फंदे बहुफंदा ॥ योगी कहै योग है नीका । दुतिया और न भाई ।। मुंडित मुंडित मौनी जगधारी । तिन कहु कहाँ सिधि पाई ॥ ज्ञानी गुणी सूर कवि दाता । ई जो कहें बड़ हमहीं। जहां से उपजे तहां krt***** - ++ T a nted