पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/८

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  • वीजक'मूल

रमैनी ॥३॥ प्रथम प्रारंभ कौनको भयऊ । दूसर प्रगट कीन्ह सो ठयऊ । प्रगटे ब्रह्मा विष्णु शिव शक्ती ।। प्रथमें भक्ति कीन्ह जिव उक्ती ॥ प्रगटे पवन पानी औ छाया । बहु विस्तार के प्रगटी माया ॥ प्रगटे । अंड पिंड ब्रह्मंडा । पृथ्वी प्रगट कीन्ह नौ खंडा ॥ प्रगटे सिद्ध साधक सन्यासी । ई सब लागि रहे । अविनासी ॥ प्रगटे सुरनर मुनि सब झारी । तेहिके खोजपरे सब हारी॥ साखी-जीव शीव सब प्रगटे, वै ठाकुर सब दास । ___ कबीर और जाने नहीं, (एक) राम नाम की आस ॥३॥ रमैनी ॥ ४॥ प्रथम चरण गुरु कीन्ह विचारा । कर्ता गावे ? सिरजन हारा ॥ कर्मे कैकै जग बौराया । सक्त। भक्ति के बांधेनि माया ॥ अद्भुत रूप जातिकी वानी । उमजी प्रीति रमैनी ठानी ।। गुणी अनगु अर्थ नहिं आया । बहुतक जने चीन्हि नहिं पाए।