पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/८०

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६ * वीजक मूल * ८ कौन दिसा बसे भाई ॥ उत्तर कि दक्षिन पूरब कि पश्चिम । स्वर्ग पताल कि माहीं । विना गोपाल और नहिं कतहूँ । नर्क जात धौ काहीं ॥ अनजाने । को स्वर्ग नर्क है । हरि जाने को नाहीं ॥ जेहि । डरसे सब लोग डरतु हैं । सो डर हमरे नाहीं ॥ पाप पुण्य की शंका नाहीं । स्वर्ग नर्क नहिंजाई ॥ कहहिं कवीर सुनो हो संतो। जहाँ का पद तहाँ समाई ॥ ४२ ॥ शब्द ॥४३॥

  • पंडित मिथ्या करहु विचारा । ना वहाँ सृष्टि

न सिरजन हारा॥थूल अस्थूल पौन नहिं पावक । रवि शशि धरणि न नीरा ॥ ज्योति स्वरूप काल नहिं जहवां । वचन न पाहि शरीरा ॥ कर्म धर्म किछुवो नाहिं उहवाँ । न वहां मंत्र न पूजा संजम सहित भाव नहिं जहवाँ । सो धी एक कि दूजा ॥ गोरख राम एकौ नहिं उहवाँ । ना वहां वेद । विचारा ॥ हरि हर ब्रह्मा नहिं शिव शक्ती । तीर्थउ rrrrrrrrrrrrrr r