पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/८१

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AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAKRI" वीजक मूल नाहिं अचारा | माय बाप गुरु जहवाँ नाहीं । सों। थों दूजा कि अकेला ।। कहहिं कबीर जो अबकी। बूम । सेोई गुरु हम चेला ॥४३॥ शब्द ॥४४॥ बुझ बुझ पंडिन करहु विचारा । पुरुप अहै कि ? नारी ॥ ब्राह्मण के घर ब्राह्मणी होती । योगी के है घर चेली ॥ कलमा पढ़ि पढ़ि भई तुरुकनी । कलमें । रहत अकेली ॥ वर नहिं वरे व्याह नहिं करे । पुत्र जन्मावन हारी ।। कारे मूंड को एकहु न छांडी. अजहूँ श्रादि कुमारी ॥ मैके रहे जा नहिं ससुरे। इसाई संग न सोवों ॥ कहें कबीर में युगयुग जीवौं ।। जाति पांति कुल खोवों ॥ ४ ॥ शब्द ॥ १५ ॥ 1 कोन मुवा कहो पंडित जना। सोसमुझाय कही। मोहि सना ॥ मूये ब्रह्मा विष्णु महेशू । पार्वती। सुत मूये गणेशू ।। मूये चंद्र मुये रवि शेपा । मूये। । हनुमंत जिन्ह वांघल सेता ॥ मूये कृष्ण मूये कर