पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/८३

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rxxx4YTY ४. बीजक मूल . . अासी ॥ पैग पैग पैगम्बर गाड़े । सो सब सरि। भौ माटी ।। मच्छ कम्छ घरियार वियाने । रुधिर नीर जल भरिया ॥ नदिया नीर नर्क वहि अावे ।। पशु मानुप सब सरिया ॥ हाड़ झरिझरि गूद गलि गलि. दूध कहाँ से आया। सोले पाँडे जेवन बैठे। मटियहि छुति लगाया ॥ वेद कितेब छाँड़ि देहु पाडे । ई सब मनके भरमा ॥ कहहिं कवीर सुनो हो पाँडे । ई सब तुम्हारो कर्मा ॥ १७॥ शब्द ॥४८॥ पंडित देखहु हृदय विचारी। को पुरुपा को नारी सहज समाना घट घट बोले। वाके चरित अनूपा। वाको नाम काह कहि लीजै । ना वाके वर्णन रूपा ॥ तें में क्या करसी नर बौरे । क्या मेरा क्या है तेरा ।। राम खुदाय शक्ति शिव एकै । कह धों। काहि निहोरा ।। वेद पुराण कितेत्र कुराना । नाना। | भाँति वखाना ।। हिंदू तुरुक जैनि श्री योगी । ये कल काहु न जाना ॥ छौ दर्शन में जो परवाना ।।

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