पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/८७

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. bandar MhandraMd4 ८६ वीजक मूल वाकी है वानी। रैन दिवस कार चूवै * पानी ।। कहहिं कबीर कछु अथलो न तहिया। हरि विवा! प्रतिपालि न जहिया ॥५०॥ ' शब्द ॥ ५१॥ बुझ २ पंडित मन चितलाय | कबहुँ भरलि । बहे कबहुँ सुखाय॥खन ऊ खन ईचे खन गाह॥ रतन न मिले पावै नहिं थाह ॥ नदिया नहिं । सासरि बहे नीर । मच्छ न मरे केवट रहै तीर ॥ 1 पोहकर नहिं वाँधल तहँ घट । पुरइनि नहीं कवल । 1 महँ वाट ॥ कहहिं कबीर ई मनका धोख । बैठा है | चला चहै चोख ॥ ५१ ॥ शब्द ।। ५२॥ यूझ लीजे ब्रह्म ज्ञानी ॥ टेक॥ घूरि २ वर्षा वर्षावे । परिया बूंद न पानी ॥ चिउँटी के पग हस्ती बाँधो । हेरी बीग रखावे ॥ उदधि माँह ते. निकर चांचरी । चौड़े गेह करावै ॥ मेंडक सर्प रहत इक संगे । विलया श्वान बियाई ॥ T r arySorrytm