पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/८८

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RARImakamana AamirmicinnatanAmater-

  • वीजक मूल

८७ नित उठि सिंघ स्यार सों डरपे । अद्भुत कथ्यो न जाई कौने संशय मृगा वन घेरे । पारथ वाणा ३ मेले।। उदधि भूपते तरिवर डाहे । मच्छ अहेरा खेल। कहहिं कबीर यह अद्ध ज्ञाना । को यह ज्ञानहिं । बूझै। बिनु पंखै उडि जाय अकाशै । जीवहि मरण न सूझे ॥ ५२॥ शब्द ॥ ५३॥ वै विरवा चीन्हे जो कोय । जरा मरण रहित ३ तन होय । विरवा एक सकल संसारा ॥ पेड़ एक ३ फूटल तीनि डारा ॥ मध्य की डारि चारि फल ! लागा । शाखा पत्र गिनेको वाका ॥ वेलि एक त्रिभुवन लपटानी । बाँधे ते छूटै नहिं ज्ञानी ।। कहहिं कबीर हम जात पुकारा । पंडित होय सो । लेइ विचारा ॥ ६३ ॥ शब्द ॥ ५४॥ . साई के संग सासुर आई ॥ टेक॥ संगन सूति स्वाद न जानी। गयो जोवन