पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/९०

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वीजक मूल ६१. पूजि न मनकी सरधा ।। करत विचार जन्म गौ ! खीसे । ई तन रहत असाभा ।। जानि चूझि जो कपट करतु हैं । तेहि अस मंद न कोई ॥ कहहिं । कवीर तेहि मूढको । भला कौन विधि होई ।।५।। शब्द ॥ ५६ ॥ माया महा ठगनी हम जानी ॥ त्रिगुणी फाँस लिये कर डोले । बोले मधुरी ! वानी । केशव के कमला द्वै बैठी । शिव के भवन ! भवानी ।पंडा की मूरति हे वैठी। तीरथहू में पानी॥ योगी के योगिनि द्वै बैठी । राजाके घर रानी ॥ काहू के हीरा होय बैठी। काहूके कौड़ी कानी ॥ भक्ता के भक्तिन है बैठी । ब्रह्मा के ब्रह्मानी। कहहिं । कवीर सुनो हो संतो। ई सब अकथ कहानी॥५६॥ . शब्द ।। ६०॥ ___ माया मोह मोहित कीन्हा । ताते ज्ञान रतन हरि लीन्हा ।। जीवन ऐसो सपना जैसो । जीवन । सपन समाना ॥ शब्दगुरु उपदेश दीन्हो । तें बाडु