पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/९१

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२ . * वीजक मूल * परम निधाना । ज्योति देखि पतंग हुलसे । पशु न पेखे अागि ॥ काल फांस नर मुग्ध न चेतहु । कनक कामनी लागि ॥ शेख सय्यद कितेव निरखे । स्मृति शास्त्र विचार ।। सतगुरु के उपदेश दिनु । जानिके जीव माराकिरु विचार विकार परिहर। तरण तारण सोय ॥ कहहिं कवीर भगवंत भजु नर । दुतिया और न कोय ।। ६०॥ ArAhA शब्द ॥ ६१॥ मरिहो रे तन का ले करिहो। प्राण छूटे बाहर ले डरिहो । काया विगुर्चन अनवनी भाँती । कोई जारे कोई गाड़े माटी ।। हिंदु ले जारे तुरुकलेगाड़े। यहि विधि अंत दुनों घर छाड़े ॥ कर्म फाँस यम । जाल पसारा | जस धीमर मछरी गहि मारा ॥ राम । बिना नर होइ हो केसा वाट मांझ गोवरोरा जैसा कहहिं कवीर पाये परतहो । या घरसे जब वा घरजेहो॥ MARHAARAAAAAAAAAmit -