पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/९७

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P ८ . बीजक मूल नित लेझ्याजी॥जो कछु कियहुजिभ्या के स्वास्थ ।। विदल पराया दइया जी।। ७० ॥ .शब्द ॥ ७१ ॥ चातक कहाँ पुकारो दूरी । सो जल जगत रहा भर पूरी जेहि जल नाद विदको भेदा । पट। में कर्म सहित उपानेउ वेदा । जेहि जल जीव शीवको ! वासा । सो जल धरणी अमर प्रकाशा । जेहि जल उपजल सकल शरीरा । सो जल भेद न जानु कवीरा ।। शब्द ।। ७२ ॥ चलह का टेढो टेहो टेढो । दशहूँ द्वार नर्क भरि बूढ़े । तू गंधी को। वेडो ॥ फूटे नैन हृदय नहिं मूझे । मति एको नहिं । जानी ॥ काम क्रोध तृप्णा के माते । बूड़ि मुये बिन पानी ॥ जो जारे तन भस्म होय धुरि । गाड़े। कृमि कीट खाई ।। सीकर श्वान काग का भोजन । तन की इहे बड़ाई। चेति न देख मुग्ध नर बोरे ।। तोहिते काल न दूरी ॥ कोटिक जतन करो यह