पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/९८

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Praduad. s

  • बीजक मूल * ६९

तनका । अंत अवस्था धूरी ॥ बालू के घरवा में ! बैठे । चेतत नाहिं अयाना। कहहिं कबीर एक राम भजे विनु । बूड़े बहुत सयाना ।। ७२ ॥ शब्द ॥७३॥ फिरहु का फूले फूले फूले । जब दश मास ऊर्ध मुख होते । सो दिन काहेक भूले । ज्यों माखी सहते नहिं बिहुरे ॥सोचि । सोचि धन कीन्हा । मुये पीछे लेहु लेहु करें सब ।। भूत रहनि कस दीन्हा ॥ देहरि लौं वर नारि संग । है। श्रागे संग सुहेला!।मृतक थान लों संग खटोला । फिर पुनि हंस अकेला ॥ जारे देह भस्म द्वै जाई ।। गाड़े माटी खाई । कांचे कुंभ उद्क ज्यों भरिया । तनकी इहै बड़ाई ॥ राम न रमसि मोहके माते ।। परेहु कालवश कूवा ॥ कहहिं कवीर नर अापु है बधायो । ज्यों नलिनी भ्रम सूवा ॥ ७३ ॥ शब्द ॥ ७४॥ ऐसो योगिया वदकर्मी। जाके गमन अाकाश analesaauchalanatara kik4.