पृष्ठ:बीजक मूल.djvu/९९

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InHHARARAMMARKARulassrikaaHAAR । बीजक मूल न घरणी ॥ हाथ न वाके पांव न वाके | रूप न वाके रेखा ।। विना हाट हट्वाई लावे । करे वयाई लेखा ।। कर्म न वाके धर्म न वाके । योग न वाके युक्ती ॥ सींगी पात्र किछउ नहिं वाके । काहे को माँगे मुक्ती ।। में तोहिं जाना तें मोहिं जाना। में तोहि माहिं समाना ॥ उत्पति परलय एकहू न होते । तब कहु कौन ब्रह्म को ध्याना ॥ जोगी श्रान एक ठाढ़ किया है। राम रहा भरपूरी॥ोपध मृल किछउ नहिं वाके । राम सजीवन मृरी ।। नट- ६ वट वाजा पेखनी पेखे । बाजीगर की बाजी ॥ कहहिं । कबीर सुनो हो संतो । भई सो राज विराजी ॥७॥ शब्द ।। ७५ ॥ ऐसो भरम निगुर्चन भारी । वेद कितेव दीन ओं दोज़ख । को पुरुषा को नारी ।। माटी का घट साज बनाया । नादे विंद समाना ॥ घट विनसे क्या नाम धरहरी । अहमक ! खोज भुलाना।एक त्वचा हाड मल मूत्रा। एक रघिर।