पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/४७

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'चार छोड़कर जंगल की राह लें। उनकी यह प्रबल इच्छा थी कि कुमार क्षत्रियोचित मार्ग का अवलंबन करें और वीर योद्धा बनें । 'पर जब उन्होंने यह देखा कि कुमार क्षात्रधर्म की उपेक्षा करके ब्राह्मधर्म की ओर मुक पड़े और दिन रात ब्रह्मविद्या के चिंतन में निमग्न रहते हैं, तो उन्हें चिंताने और घेर लिया और उनकी आँखों के सामने अंधकार छा गया। असित की बातें उन्हें याद आई। वे बहुत घबराए और उन्होंने कुमार को विवाह बंधन में बाँधना निश्चित किया। ___ जब सिद्धार्थ कुमार को यह ज्ञात हुआ कि मेरे समाजों में सम्मि- लित न होने और एकांत सेवन से पिता को क्षोभ हो गया है और वे समझते हैं कि मेरी शस्त्रविद्या विस्मृत हो गई है, तब एक दिन . उन्होंने समाज में जाकर पिता का क्षोभ दूर करने का संकल्प किया। एक दिन जब समाज की आयोजना की गई और समस्त शाक्य 'धनुर्धर एकत्र हुए, तब सिद्धार्थसमाज के आँगन में उतरे और उन्होंने अपने शस्त्र-कौशल से समस्त धनुर्धरों और योद्धाओं के छक्के छुड़ा दिए । शुद्धोदन का क्षोभ जाता रहा और उन्हें निश्चय हो गया कि सिद्धार्थ न केवल अध्यात्मविद्या ही में कुशल हैं, अपितुवे धनुर्वेद के भी अद्वितीय पंडित और महारथी हैं। अपने पुत्र को इस प्रकार अध्यात्म-विद्या और धनुर्विद्या में 'कुशल देख महाराज शुद्धोदनने एक दिन अपने पुरोहित को सम्मान- पूर्वक बुलाकर उनसे निवेदन किया कि सिद्धार्थ कुमार अब विवाह के योग्य हुए हैं। आप उनके योग्य कोई वधू कपिलवस्तु, देवदह भी अद्वितीय पासा प्रकार अध्यात्म- हितको सम्मान