पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/४९

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(६) उहोधन पनेपि दोषाः प्रभवंति रागिणाम् गृहेपि पंचेंद्रियनिग्रहस्तपः। निवृत्तितः कर्मणि यः प्रवर्तते निवृत्तरागस्य गृहस्तपोवनम् । शाक्य कुमार का विवाह हो गया; बधू आई; पर फिर भी उनका एकांतवास न गया। वे नित्य अपने आराम में बैठे हुए जन्म-मरण के प्रश्नों पर विचार किया करते थे। वे अपने मन में विचारते थे कि प्राणियों में अहंभाव क्यों उत्पन्न होता है ? क्या चेतना शरीर से पृथक किसी परोक्ष द्रव्य का गुण है जिसे लोग आत्मा कहते हैं ? यह आत्मा शरीर से पृथक् वस्तु है वा शरीर ही का कोई अंश विशेष है ? इसकी स्थिति शरीर से पृखक है अथवा यह शरीर के साथ ही पंचत्व को प्राप्त हो जाती है ? यदि यह शरीर से पृथक् है तो यह कहाँ से आती है और शरीर का नाश होने पर कहाँ जाती है ? इसे क्यों दुःख वा सुख होता है ? क्या कोई ऐसी अवस्था वा देश भी है जिसमें दुःख का अभाव हो ? यदि दुःख न हो तो सुख का अनुभव कैसे हो सकता है ? सुख के अभाव में दुःख का ज्ञान कहाँ ? यह दोनों सापेक्ष हैं वा निरपेक्ष ? यदि निरपेक्ष हैं तो द्वंद्व कैसा ? यदि सापेक्ष हैं तो इनमें से एक का अत्यंता- भाव किसी देश, काल वा अवस्था में कैसे संभव हो सकता है ? क्या ये वास्तव में कोई निश्चित वस्तुएँ हैं ? यदि निश्चित हैं तो