पृष्ठ:बुद्धदेव.djvu/६७

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( ५४ ) सुन कुमार ने कहा-" महाराज ! यदि आप मुझे चार वर दें तो मैं गृहाश्रम कदापि न त्याग करूँ। वे चार वर ये हैं (१) मैं बुड्ढा न होऊँ और सदा यौवनावस्था में रहूँ, (२) मैं सदा आरोग्य रहूँ, मुझे कभी कोई व्याधि न हो, (३.) मैं अमर हो जाऊँ कभी मृत्यु मेरे पास न आवे और (४) मेरी संपत्ति सदा धनी रहे और विपत्ति न आवे । " महाराज ने कुमार की यह बात सुन अत्यन्त दुःखित हो कहा-" हे कुमार! जब कल्पांतस्थायी ऋपिगण भी जरा, व्याधि, मृत्यु और विपत्ति से मुक्त नहीं हो सके, तो मेरी क्या शक्ति है कि मैं तुम्हे इनसे बचा सकें।" पिता का यह वाक्य सुन सिद्धार्थ ने कहा- महाराज.! यदि आप यह चार वर मुझे नहीं दे सकते तो कृपाकर मुझे यही आशीर्वाद दें कि अब मेरा इस संसार में पुनर्जन्म न हो।" पिता ने पुत्र के इस वचन के उत्तर में कहा-" तुम्हारा यह अभिप्राय अनुमोदनीय है कि संसार से मोक्ष प्राप्त हो, तुम्हारी यह आशा सफलीभूत हो । . .

  • सो पोषितो हि पुरतो वृषतिमयोचत

. मा भयु विप्न. मकरोदि मा घेद सेदन । नैष्क्रम्यकालसमयो. या देवयुको हन्त हमस्य नृपते भजन: सराष्ट्रः॥ ‘तम पूर्णनयनो नृपतिर्यभाषे किंचित्मयोजन भवैद्विनियर्तनेते। किं वापसे भम परं पद सर्प दास्पे अनुग्रह राज कुलं मां घ दर्द च राष्ट्र.. यद्वोधिसत्य अयपी मधुरमेलापी ' . • छामि देवतुरो यर ताम्मे देहि।