( ७८ ) था, जो निरंजना के किनारे उन्हें चावल आदि दे आती थीं। उस कन्या ने गौतम को मूंग का जूस बनाकर दिया और उनको बड़ी. सेवा-शुनषा को । और क्रमशः जब गौतम के शरीर में कुछ बल का संचार हुआ, तब उन्हें खिचड़ो आदि खिलाकर इस योग्य किया कि वे अपने पैरों के बल खड़े हो सकने लगे। इस प्रकार वे अपना विगत स्वास्थ्य लाभ कर निरंजना नदी के किनारे भक्ष्यचर्या करते हुए विचरने लगे। , गौतम के स्थान त्याग कर चले जाने पर पंचभद्रवर्गीय ब्रह्मचारी जो उनके साथ गिरिव्रज से आए थे और वहीं भिक्षा करते हुए उनके पास रहते थे, गौतम को भीरु जान उनका साथ छोड़ काशी चलने को उद्यत हुए । उन लोगों ने अपने मन में कहा कि गौतम सकता। फिर उसके लिये समाधि-सिद्धि और प्रज्ञालाम होना नितांत दुस्तर क्या, असंभव हैं । यह सोच उन लोगों ने गौतम को वहाँ अकेला छोड़ काशी को प्रस्थान किया। ___ थोड़े दिन भैक्ष्यचर्या करने से जब गौतम का स्वास्थ्य ठीक हो गया तब वे फिर मिताहारपूर्वक समाघि सिद्ध करने की चिंता करने लगे। वे योगाभ्यास के लिये शास्त्रोचित पवित्र स्थान दिने लगे। एक दिन उन्होंने निरंजना नदी को पार किया तो उन्हें नदी के पास ही एक सुंदर रम्य स्थान दिखाई पड़ा। वहाँ एक उत्तम अश्वत्थ का वृक्ष था जिसे देख गौतम का मन अत्यंत उत्साहित
- बुद्धवंथादि का मत है कि उस गांव का नाम सेनग्राम भा और