पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/१२९

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वा दिन तो अनुशासन फेर्यो पुर में सारे
रहैं न दुख के दृश्य मार्ग में कोउ हमारे,
मम प्रसन्नता हेतु बनैँ बरबस प्रसन्न सब,
हाट बाट में होत रहैँ बहु मङ्गल उत्सव।
पै मैं लीनो जानि नित्य को नहिं सो जीवन
देख्यों जो मैं अपने चारों ओर मुदित मन;
यदि मेरो संबंध राज्य सोँ तुम्हरे नाते
जानन चहिए गली गली की मोकों बातें,
तिन दीनन की दशा चूर जो हैं श्रम माहीं,
रहन सहन तिन लोगन की जो नरपति नाहीं।
आज्ञा मोको मिलै जाहुँ मैं छद्म वेश गहि।
सुख तिनको या बार निरखि मैं फिरौं मोद लहि।
यदि ह्वैहौं नहिं सुखी, बाढ़िहै अनुभव जानो।
मिलै मोहिं आदेश फिरौं पुर में मनमानो।
सुनि इन बातन को महीप बाले मंत्रिन प्रति-
"संभव है या बार कुँवर की फिरै कछू मति!
करि प्रबंध अब देहु नगर देखै सो जाई।
कैसो वाको चित्त सुनाओ मोको आई।"


दूसरे दिन कढ़े छंदक साथ राजकुमार,
चले बाहर फाटकन के नृप वचन अनुसार।