पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/१८५

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"महाराज हैं करत आज या विधि अनुशासन:-
यज्ञन में बलि हल और करिबे हित भोजन
होत रह्यो वध विविध पशुन को अब लौं घर घर,
पै अब सोँ नहिँ रक्त बहावै कतहुँ कोउ नर।
जीव सबै को एक; ज्ञान हित जीवन सारो।
दयावान् पै दया होति निश्चय यह धारो।"
थल थल पै शुभ शिलालेख यह सोहत सुंदर।
वा दिन सोँ उत गंगातट के रम्य देश भर,
जहाँ जहाँ प्रभु घूमि दया को मंत्र सुनायो,
पशु, पंछी, नर बीच शांति-सुख पूरो छायो।



प्रभु की ऐसी दया रही तिन सब पै भारी
प्राणवायु जो खैंचि रहे चल जीवन धारी,
सुख दुख के जो एक सूत्र में बँधे बेचारे,
जग में नाना जतन करत जो पचि पचि हारे।
जातक में है लिखी कथा यह एक पुरानी-
पूर्व जन्म में रहे बुद्ध इक ब्राह्मण ज्ञानी।
बसत बीच दालिद्द ग्राम के मुंडशिला पर।
भारी सूखौ एक बार परि गयो देश भर।
ढँपे न ढेले, खेत बीच ही धान गए मरि;
घास, पात, तृण, लता गुल्म मुरझाय गए जरि।