पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१०५

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म १०२ बौद्ध-धर्म का अध्ययन करने के लिए भारतवर्ष भेजा। ये १६४ ई० में आये और वारह वर्ष तक यहाँ बौद्ध-धर्म का अध्ययन करते रहे । यहाँ से लौटने के समय ये लोग बुद्ध की मूर्ति, कुछ ग्रन्थ और दो भारतीय पण्डितों को चीन ले गये।जो दो भारतीय पंडित चीन गये, उनके नाम काश्यप मातंग और धर्मरक्षा था । काश्यप मातंग से राजा ने बौद्ध-धर्म की दीक्षा ली और अपनी राजधानी के पश्चिम में एक विशाल मन्दिर बनवाकर उसमें वुद्ध की मूर्ति को स्थापित किया। इसके पश्चात् तो बहुत-से विद्वानों ने वहाँ जाकर बौद्ध-धर्म का प्रचार बड़े जोर-शोर से किया और वहाँ की भाषा सीखकर सैकड़ों संस्कृत और पाली ग्रंथों का चीनी भाषा में अनु- वाद किया। और इस प्रकार तमाम चीन में बौद्ध-धर्म विस्तार को पा गया । यद्यपि आज बौद्ध-धर्म बहुत विकृत अवस्था में है, फिर भी वहाँ बौद्ध-धर्म के बहुत से मठ हैं और प्रजा उनके पूजन-अर्चन में लगी ही रहती है। कोरिया में एक सन्दो नामक चीनी यात्री सन् ३७२ में कुछ बौद्ध-ग्रंथ और मूर्तियाँ लेकर पहुंचा। इसे चीन के सम्राट ने भेजा था और वह सीधा दरवार में गया । उसकी बातों का दरवार पर अच्छा प्रभाव पड़ा और वहाँ के राजा ने बौद्धधर्म स्वीकार कर लिया और बहुत शीघ्र ही अपनी राजधानी में दो बौद्ध-बिहार बनवाये । इसके पश्चात् कोरिया के राजा ने चीन देश से अच्छे विद्वान् बौद्ध-उपदेशकों को बुलाया। इन उपदेशकों में मारानन्द नाम का एक उपदेशक बहुत विद्वान्