पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१२३

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म १२० भागों में दसों प्रश्नों के विवाद का कोई उल्लेख नहीं हैं। इससे प्रतीत होता है कि विनयपिटक के मुख्य भाग दूसरी सभा के पहले के अर्थात् ईसा से ३७७ वर्ष पूर्व के हैं। निश्चय ये तीनों पिटक, बुद्ध की मृत्यु के १००-२०० वर्ष के बाद ही बनाये गए हैं, क्योंकि इनमें गंगा की घाटी के हिन्दुओं के जीवन और हिन्दू राज्यों के इतिहास का वर्णन है । साथ ही बुद्ध के जीवन-कार्य और उसकी शिक्षाओं का अधिक प्रामाणिक और कम बनावटी वृत्तान्त मिलता है । बुद्ध के जीवन की वास्त- विक घटनाएँ, तत्कालीन हिन्दु-समाज और राज-सत्ता की दशा हम जानना चाहें, तो हम इन्हीं 'त्रिपिटक' के द्वारा जान सकते हैं। ये तीनों पिटक-'सुत्त-पिटक' 'विनय-पिटक' और 'अभिधर्म-पिटक' के नाम से प्रसिद्ध हैं। लंका में ये ग्रन्थ पिटारों में रक्खे गए, इस लिए इनका नाम 'पिटक' रक्खा गया। 'सुत्तपिटक'-में वे बातें है, जो स्वयं बुद्ध ने कही हैं। 'विनय-पिटक' में भिक्षु और भिक्षुणियों के लिए आचरण- सम्बन्धी नियम हैं। ये भी बुद्ध की आज्ञा से बनाये गए हैं। 'अभिधर्म-पिटक'-में भिन्न-भिन्न विषयों पर शास्त्रार्थ है, अर्थात् भिन्न-भिन्न लोकों में जीवन की अवस्थाओं पर, शारीरिक गुणों पर, तत्त्वों पर और अस्तित्व के कारणों पर विचार है। यह स्पष्ट है कि बुद्ध ने इस साहित्य का प्रचार सर्व-साधारण की भाषा में किया था। चुल्लुवर्ग (५ । ३३ । १) में लिखा है- दो भिन्तु ब्राह्मण थे, ये भाई थे, इनका नाम-पमेलु और ठेकुल था।