पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१३०

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१२७ बौद्ध-धर्म-साहित्य बौद्धों में अवदान-साहित्य की बहुत प्रशंसा है। अवदान का अर्थ है, उदात्त अर्थात् पराक्रम का कार्य । इस लम्बे-चौड़े साहित्य में बुद्ध के इस जन्म और पूर्व जन्म की कथाएँ हैं। ये कथाएँ बहुत ही आश्चर्यजनक हैं। इसमें अवदानशतक, दिव्यावदान, रूपवती-अवदान, कल्पद्रुम-अवदान, द्वाविंशत्यवदान, भद्रफला- वदान, विचित्रकणिकावदान, सुमगधावदान, अवदानकल्पलता, व्रतवन्दमाला, जातकमाला (बोधिसत्वावदान) आदि अन्य बहुत प्रसिद्ध हैं। इनमें से बहुत से ग्रन्थ अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं। बोधिसत्वावदान का लेखक आर्यशूर है । इस ग्रन्थं को हार- वर्ड ओरिएन्टल सीरीज़ में एच० कर्न साहब ने प्रकाशित किया हैं । अवदान कल्पलता का कुछ हिम्सा रायबहादुर शरचन्द्रदास ने बंगाल एशियाटिक सोसाइटी द्वारा प्रकाशित किया है। महायान बौद्ध-साहित्य के जो नव धर्म हमने ऊपर गिनाये हैं और जिनमें से ललित बिस्तर का वर्णन हम पीछे कर चुके हैं। सद्धर्म पुण्डरीक सन् १९०८ में रूस के सेण्टपीटर्स वर्ग के "वीकली श्रोथेका बुद्धिका नाम की ग्रन्थमाला में प्रकाशित हुआ था । जिसका अंग्रेजी अनुवाद एच० कर्ण साहब ने सेकेण्ड-बक्स नामक ग्रन्थमाला में प्रकाशित किया है। इस कथा में अवलोकितेश्वर, अमिताभ और मंजुश्री आदि भिन्न-भिन्न रूपों की कल्पना की जाती है। और इसके वर्णन और गुप्त कीर्तन के लिए गएड-व्यूह, करण्ड-व्यूह, सुखावती-व्यूह आदि पुस्तकों की रचना की गई है। लङ्कावतार में शाक्य मुनि बुद्ध के साथ लंकाधिपति रावण की