पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१८७

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म २०० सामान्य अपराधों का विचार ग्राम्य-पंचायतें करती थीं। पेशे की पंचायतें पृथक् थीं, जो पेशे-सम्बन्धी पंचायतें किया करती थीं। इनके ऊपर दो न्यायालय थे, जो केन्द्रों में होते थे। इनमें तीन तो श्रुति,स्मृति ज्ञाता पण्डित और तीनस्थानीय आचार-विचार के ज्ञाता होते थे। नीचे के न्यायालयों में इतरारनामा, ऋण, चोरी,खेती के झगड़े, मारपीट, घरेलू झंझट आदि होते थे। बड़े न्यायालयों में व्यापार, शिल्प, छल, विद्रोह, डकैती, व्यभिचार और खून के अभियोग जाते थे। ये अदालतें प्राणदण्ड दे सकती थीं । अकाल के प्रबन्ध भी इन्हीं के सुपुर्द थे। राज-सभा में एक कानून का प्रकाण्ड विद्वान् होता था, इसे पावित्राक कहते थे । नहरों का पृथक् विभाग था। भूमि की ठीक नपाई होती थी। पानी का कर पृथक् था। अकाल में सरकारी अन्नागारों से प्रजा को अन्न बाँटा जाता था, अगली फसल के लिए बीज दिया जाता था, तथा मज- दूरी के लिए नये नये काम खोले जाते थे और यथासम्भव सुकाल स्थल में लोग भेज दिये जाते थे। जल-स्थल-मार्ग एक बड़ी सड़क पाटलीपुत्र से अफगानिस्तान तक गई थी। यही अव सड़क आजम या ग्राँड ट्रंक रोड कहाती है। सड़कों के दोनों ओर वृक्ष लगे रहते थे । विनाम-भवन भी थे। आध-आध कोस पर पत्थर गड़े थे, जिनकी रखवाली और मरम्मत होती रहती थी। जिस गाँव के मजदुर इन मरम्मतों को करते थे, उन्है कर नहीं देना पड़ता था। तंग-से-तंग गली की चौड़ाई १ गज होती