पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२०३

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म , नहीं हो सकती थीं। चरागाह और जंगलों पर सबका समान अधिकार था । पंचायत गृह, अतिथि-शाला, सड़क, बन, बगीचे कुऐं इत्यादि पंचायत बनवाती थी । गाँव वाले खूब खाते-पीते थे। नगरों की संख्या बौद्ध-काल में कम थी। उस काल के १५-२० बड़े-रड़े नगरों के नाम मिलते हैं- अयोध्या, बनारस, चम्पा, कांपिल्य, कौशांबी, मथुरा मिथिला राजगृह, सूरत, साकेत, श्रावस्ती, उज्जैन, वैशाली, तक्षशिला, पाटलीपुत्र आदि। ये नगर चारों ओर दीवारों से घिरे रहते थे। नगर के चारों ओर चार फाटक रहते थे। जिनसे चार ओर को चार बड़े-बड़े राजमार्ग जाते थे। नगर में गलियाँ ( वीथी) और मुहल्ले थे। एक-एक मुहल्ले में एक-एक पेशे के लोग रहते थे। बाजारों में कपड़े, तेल, साग-भाजी, फल-फूल, सोने-चाँदी, के गहने आदि सब प्रकार की वस्तुएं विकती थीं । कौटिलीय अर्थशास्त्र में लिखा है कि प्रत्येक नगर में एक पण्यगृह (बाजार) होता था। यह चौकोर होता था, और पक्का बना होता था । नगर में एक संस्थाध्यक्ष (व्यापार और वाणिज्य का मंत्री) रहता था,जो व्यापार और व्यापारियों की देख-भाल रखता था। माल बेचने वाला जब तक यह सावित न कर सके कि माल चोरी का नहीं है, तब तक उसे माल बेचने की आज्ञा नहीं मिलती थी। दूकानदारों के भाव और बाट भी यह मन्त्री जाँचता था । ठग को दंड मिलता था। वही मन्त्री निर्ख तय करता था। मुनाफा निश्चय , ,