पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२०८

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२२१ बौद्ध काल का सामाजिक जीवन शिक्षित लोग और उनकी देखा-देखी और लोग, विशेषतः पाटलि- पुत्र, अवन्ति, काशी, श्रावस्ती, तक्षशिला आदि प्रधान नगरों के निवासी भी अपने बोल-चाल में यथाशक्य संस्कृत का पुट देने का प्रयत्न करते रहे होंगे। लिपियाँ भी कई प्रचलित थीं, पर अशोक के समय में प्रधान लिपि वही थी, जिसे ब्राह्मी लिपि कहते हैं। इसी लिपि से श्रावश्यक और क्रमागत परिवर्तनों के पीछे हमारी वर्तमान देव- नागरी लिपि निकली है । बहुधा विद्वानों की यह सम्मति है कि लिखने की विद्या आर्यों ने स्वयं आविष्कृत न करके इराक या शाम के निवासियों से सीखी था । अक्षरों के साम्य आदि को देखकर उनका यह छानुमान है कि पहिले पहिल बुद्ध से सौ-दो सौ धर्प पूर्व भारतीय व्यापारी इस उपयोगी विद्या को उस देशों से सीख आए फिर धीरे-धीरे उसका प्रचार सारे देश में हो गया । अशोक के समय तक इसका इतना प्रचार हो गया था कि स्त्रियाँ तक लिखना जानती थीं, यद्यपि लिखने से इतना कम काम लिया जाता था कि मेगास्थिनीज ने लिखा है कि ये लोग लिखना नहीं जानते । जो कुछ हो, अशोक के समय तक प्राचीन लिपि में भारतीय वर्ण माला के अनुसार बहुत कुछ परिवर्तन हो गया था, और स्वरों की हस्त्र, दीर्घ मात्राओं के चिह्न प्रकट करने को भी निकाल लिए गए थे, जिनका पहले अभाव था। यह सब था,परन्तु लिखने से बहुत काम नहीं लिया जाता था। राजकार्य तो विना लिखने के चल नहीं सकता था। व्यापारियों को