पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२६४

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२७७ युद्धगया समय कनिंघम साहब ने वहाँ दो पीपल के पेड़ लगा दिये। आज बौद्ध लोग उसी पीपल की पूजा करते हैं। जव वर्मा के राजा ने मन्दिर की मरम्मत की आज्ञा ली थी, तब शर्त यह थी कि कोई नया काम शुरू न किया जाय, सिर्फ मरम्मत ही की जाय । सन् १८७७ में बाबू राजेन्द्रपाल ने बर्मी कारीगरों का काम देखने के लिये चौद्ध गया की यात्रा की और उनकी रिपोर्ट पर एप्रिल मास में काम बन्द कर दिया गया। उसी साल फिर जब बा के राजा अंग्रेज अफसरों की अध्यक्षता में मरम्मत का काम कराने को सहमत होगये तो मि० सी० ए० मिल्स की अध्यक्षता में काम शुरू हुआ । सन् १८७६ में मि० वर्गलर ने सरकार को वर्मी कारीगरों की लापर्वाही की शिकायत की तो सरकार ने मरम्मत का काम अपने हाथों में ले लिया और उसकी मरम्मत पूरी होगई । इस प्रकार मरम्मत में दो लाख रुपया खर्च हुश्रा । मरम्मत हो जाने के बाद प्रियसन साहब ने सरकार से यह पूछा कि यह मन्दिर पी० डब्ल्यू डी० के अधि- कार में कब अायगा ? सरकार ने उनको जवाब दिया कि सन १८८१ ई०१ अप्रैल को पी० डब्ल्यूडी के अधिकार में ले लिया जायगा । ठीक समय पर सरकार ने मन्दिर को पी० डी० के अधिकार में दे दिया और तब सं यह पी० डब्ल्यू० डी० के अधिकार में है। और बराबर मरम्मत होती रहती है। इसके बाद जब अनागरिक धर्मपाल ने इस मन्दिर की यात्रा की तो उनके मन में धार्मिक विचार पैदा हुए। और उनका यह