पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/३०१

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बुद्ध और बौद्ध धर्म " उठाई तो एकदम सत्र के मन मोहित कर लिये। जब उसने छोटी- से-छोटी जाति के लोगों को अपने धर्म में बड़े-से-बड़े पद दिये तो लाखों उसके अनुयायी हो गये । दूसरे बुद्ध ने भारतीयों तक ही अपने धर्म को सीमित नहीं रक्खा । बुद्ध ने उपदेश दिया कि यज्ञ करना, अग्नि में घी होमना और पशुओं को जलाना, यह कोई अच्छा धर्म नहीं है। इसकी अपेक्षा तो यह अच्छा है कि अपनी धुरी भावनाओं को दमन करो; क्रोध, मान, माया, लोभ, द्वेष आदि को त्यागो और ज्ञान रूपी अग्नि में अपने कर्मों को जलायो । बुद्ध का यह सरल धर्म लोगों को भा गया और ढेर-के-ढेर नर-नारी भितु तथा भिक्षुणियाँ होकर बौद्ध- मत का जो निर्वाण का मार्ग था, उसका अनुसरण करने लगे। परन्तु सब लोग सन्यासी नहीं बन सकते थे, इसलिये बुद्ध ने गृहस्थों के लिये भी एक ऐसा मार्ग बताया कि जो बिल्कुल सरल था। बुद्ध का व्यक्तित्व बहुत बढ़ा-चढ़ा था । जब महायान-सम्प्रदाय की उत्पत्ति हुई तो बुद्ध और बुद्धत्व दोनों का समान मान होने लगा। महायान-सम्प्रदाय के सिद्धान्तानुसार गृहस्थावस्था में रहकर भी मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है। ने अपनी साधारण भाषा में ही उपदेश दिया था और ग्रन्थ भी अपनी साधारण भाषा में बनाये थे। महायान-सम्प्रदाय के अन्य संस्कृत भाषा में थे, अतः वह ब्राह्मण विद्वानों के हाथ में चला गया और धीरे-धीरे पौराणिक धर्म में मिल गया। गुप्तवंश के राजाओं के राज्य-कालमें बौद्ध-धर्म हिन्दू-धर्म में बहुत कुछ मिल