पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/४१

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म 'अस्सलायन ने इसको भी स्वीकार किया कि अच्छे और बुरे कर्मों का फल तो मनुष्य को बिना जाति का विचार किये 'ही मिलेगा। गौतम ने कहा-"यदि किसी घोड़ी का किसी गधे के साथ संयोग हो जाय तो उसकी सन्तान अवश्य खच्चर होगी, लेकिन क्षत्रिय और ब्राह्मण के संयोग से जो संतान होती है वह अपने मां-बाप ही की तरह होगी। इसलिए यह स्पष्ट है कि ब्राह्मण और क्षत्रिय में कोई भेद नहीं। इस तर्क से अस्सलायन निरुत्तर होगया और वह चुपचाप दुखी और नीची दृष्टि किये हुए कुछ सोचता रहा और इसके बाद वह गौतम का शिष्य हो गया। बौद्ध ग्रन्थों में उसके उपदेशों का वर्णन स्पष्टरूप से किया गया है-यह बतलाता है कि हे शिष्यो ! जिस प्रकार बड़ी-बड़ी नदियाँ; जैसे गंगा, यमुना, अश्रावती आदि जब समुद्र में पहुँचती हैं तो वहाँ अपने पुराने नाम और प्रसिद्धि को छोड़कर केवल समुद्र के नाम से पुकारी जाती हैं। ठीक उसी प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र जब भिक्षु हो जाते हैं तो वह भिक्षु ही रह जाते हैं। उनमें कोई भेद नहीं रह जाता । बुद्ध ने बड़ी कड़ाई से इस नियम का पालन किया और उपाली, एक हन्नाम होते हुए भी, भित होने पर एक बड़ा पूज्य और माननीय भिक्षु हुआ। थेरगाथा में एक हृदयग्राही कथा लिखी हुई है--उससे पता चलता है कि बौद्ध-धर्म भारतवर्ष में नीच जाति के लोगों के लिए