पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/६८

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बौद्ध-संघ साधारणतया संघ के नियम चलाने के लिए कुछ साधारण . पदाधिकारी नियुक्त थे; जैसे भक्तोद्देशक जो भोजन बांटता था, भाँडागारिक जो भंडार का प्रबन्ध करता था, पानीयागारिक जो पानी का प्रवन्ध करता था। अपनी विद्या और उम्र के अनुसार भिक्षुओं में दर्जे होते थे; जैसे स्थावर उपाध्याय, आचार्य श्रादि । इतना होते हुए भी उनमें आपस में कोई भेद-भाव न था। भिक्षुणियों के लिए भी सब ये ही नियम थे; किन्तु उनका सब काम बिलकुल प्रथक था । यद्यपि वह संघ भिक्षुओं ही के आधीन था। भिक्षुणियों का दर्जा भिक्षुओं से नीचा माना जाता था। इस विषय में बहुत, से नियम और उपनियम बनाये गये थे कि भिक्षुणियों के संसर्ग से भिक्षुओं का संघ कहीं अपवित्र व दोपपूर्ण न हो जाय। इस प्रकारबौद्ध-संघ की स्थापना में तीन महत्वपूर्ण बातेंथीं- (१) सहयोग और सार्वजनिक बुद्धि से काम लेना । (२) संगठन और व्यवस्था बनाये रखना। (३) प्रचार और धर्म विस्तार के नये नये आयोजन करना । इनका यह परिणाम हुआ कि बौद्ध-धर्म एक दिन सम्पूर्ण एशिया में फैल गया।