पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/७९

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बुद्ध और बौद्ध धर्म ७६ तो एक प्रकार की गुप्तशक्ति की छाप हमारे शरीर में लग जाती है, और उसीको अविज्ञप्ति रूप कहते हैं, अर्थात् जो कर्म दूसरे को तो मालूम न हो, परन्तु वह शरीर में छिपा रहे। कर्म-कर्म के दो भेद हैं-चैतव कर्म, जिसे मनस्कार भी कहते हैं और दूसरा चैतसिक कर्म । चैतसिक कर्म के दो भेद हैं- कायिक कर्म और वाचिक कर्म । उनके भी दो-दो भेद हैं, विज्ञप्ति और अविज्ञप्ति कर्म। चित्त के विषय में बौद्ध ग्रन्थकार थोड़ा विस्तार से वर्णन् करते हैं-चिच चैत-धर्म का राजा है, उसको मन भी कहते हैं, वह चेतन है, इसलिए चित्त, मनन करता है, अतः मन और विवेक करने से उसे विज्ञान कहते हैं। बौद्ध-दर्शन में चित्त, मन और विज्ञान का अर्थ एक ही है । अर्थात् पहला चक्षु-विज्ञान, दूसरा श्रोत्र-विज्ञान, तीसरा घ्राण-विज्ञान, चौथा जिहा-विज्ञान, पाँचवाँ काय-विज्ञान और छठवाँ मनोविज्ञान, ये चित के छः भेद हैं। इन सबका सम्बन्ध अपनी-अपनी इन्द्रियों से है । ये छः ही विज्ञान मिलकर विज्ञान-शक्ति बनाते हैं। इन्हीं छः विज्ञानोंके साथ छ: विज्ञान काय भी हैं, जैसे-चतु-विज्ञान काय, श्रोत्र विज्ञान काय, मनोविज्ञान वर्ण, संस्थान, शब्द, गन्ध । विज्ञान के तीन भेद हैं-स्वभाव निर्देश, प्रयोग निर्देश और अनुस्मृति निर्दश । इसमें पहले का सम्बन्ध वर्तमानकाल से है, दूसरे का तीनों कालों से, तीसरे का सम्बन्ध केवल भूतकाल से है। इन छः प्रकार के विज्ञानों में चतु, श्रोत्र, घ्राण, जिला और