पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/८

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५ महान् बुद्ध किया; परन्तु गौतम ने उसे वापिस कर दिया और वह अकेला ही राजगृह की ओर चल दिया। राजगृह मगध सम्राट् बिम्बसार की राजधानी थी। वह बड़ी- बड़ी घाटियों के बीच पाँच पहाड़ियों से घिरी हुई थी। अनेकों साधु और संन्यासी इन पहाड़ियों की गुफाओं में रहते थे, और वे ध्यान और अध्ययन करने के कारण बहुत प्रसिद्ध हो गये थे। वह घाटियां नगर से कुछ दूर थीं। गौतम अलार नामक संन्यासी के पास कुछ दिन रहा और फिर उद्रक संन्यासी के पास रहकर उसने हिन्दू दर्शन-शास्त्र सीखा; लेकिन इससे उसको सन्तोष न हुआ। गौतम यह जानना चाहते थे कि क्या तपस्या करने से देवी- शक्ति और ज्ञान प्राप्त हो सकते हैं ? वह उर्बला के जंगल में जो आधुनिक बौद्धनाया के निकट था, गया और ५ साथियों के साथ ६ वर्ष तक कठोर तपस्या की और बड़े कष्ट सहे । इससे सर्वत्र उसकी ख्याति हुई; क्योंकि अज्ञानी लोग उसे बड़ी पूज्य दृष्टि से देखते और बहुत जल्द प्रभावित होते थे; परन्तु गौतम, जिस वस्तु की खोज में था, वह उसे न मिली। एक दिन अत्यन्त दुर्बलता के कारण वह गिर पड़ा। उसके शिष्यों ने समझा कि वह मर गया, लेकिन जब वह होश में आया, तो उसने निश्चय किया कि ये तपस्याएं व्यर्थ हैं और उन्हें छोड़ दिया। इसके शिष्यों ने इसपर घृणा प्रकट की और इसे छोड़कर वे बनारस चले गये।