पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१३०

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बृहदारण्यकोपनिषद् स० भीतर से । अलोमकालोमरहित होता है। तत्-इसी कारण कोई-कोई 1 + याज्ञिकाम्न्याज्ञिक । यत्-जो । इदम् यह । आहुम्कहते हैं कि । अमुम्-इस । एकैकम्-एक-एक देव को । यजम्यजन करो। तेन् । न-नहीं। विजानन्ति-जानते हैं कि। एतस्य एव-इसी प्रजापति की । साबह । विस्मृष्टिः अग्न्यादि देवसृष्टि है । उ-और । सर्वन्ये लव । देवाः अग्न्यादि देवता । एपः यही प्रजापति हैं । अथ और । यत्-जो । किंचकुछ । इदम् यह । आद्रम्-गीली वस्तु है यानी अन्नादि है । तत् उसको। रेतसः अपने बीयं से ।+ साम्बह । असृजत पैदा करता. भया ! उ-औरः । तत्वही । सोमः सोम है। च-ौर । यावत्-जितना । अन्नम्न्यन्न है । च-और । ग्रेनाद: अन्न का भोक्ता है। एतावत्-उनना ही । इदम् सर्वम् यह सवं जगत् है। अन्नम् एव-ग्रन ही । सोमः सोम है। और । अग्निः अग्नि । अन्नादः अन्न का भोगता है। सा-वही । एपा-यह । ब्रह्मणः प्रजापति को । अतिसृष्टिः- श्रेष्ठ सृष्टि है। यत्-जो । श्रेयसः श्रेष्ट । देवान्देवों को । असृजतन्त्रह उत्पन्न करता भया । अथ-और । यत्-जिस कारण ! प्रजा- पतिः प्रजापति । मर्त्यः सन्-मरणधर्मी होता हुश्रा भी । अमृतान्-अजर अमर देवों को। असृजत-पैदा करता भया । तस्मात्-तिसी कारण । अतिसृष्टिः देवों की सृष्टि प्रजापति से अतिश्रेष्ठ है। अतः इसलिये । यःजो उपासक । एवम् इस प्रकार | वेद-जानता है। सावह । अस्य-इस प्रजापति की । एतस्याम्-इस । अतिसृष्ट्याम्-अतिसृष्टि में । स्रष्टा सृष्टिकर्ता । भवति होता है। भावार्थ। हे सौम्य ! हे प्रियदर्शन ! इसके पीछे जब वह प्रजापति