पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१३१

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अध्याय १ ब्राह्मण-५ खाता है, विना दिये दूसरों को बह पाप से निवृत्त नहीं होता है, कारण यह है कि यह अन्न सबके साझे का है, खास उसी का नहीं है, हे सौम्य ! और जो मंत्र ने यह कहा है कि पिता ने दो अन्न "त" और "प्रहुत" नाम करके देवताओं को दिया है, उसका अर्थ यह है कि दो कर्म यानी वैश्वदेव और चलिहरन कर्म देवताओं के लिये रक्खा गया है, और इसी कारण विद्वान् लोग अभ्यागतरूप देवता के आने पर उसकी प्रतिष्ठा के लिये होम द्रव्य अग्नि में देते हैं, और कोई कोई आचार्य ऐसा भी कहते हैं कि यह दोनों अन्न दर्श यानी, अमावस और पूर्णमास के नाम से समझे जाते हैं, इस लिये हर अमावस, और पूर्णमास. को निष्काम यज्ञ अवश्य करे, और जो मंत्र ने यह कहा है कि पशुओं के लिये एक अन्न दिया गया है उसका अर्थ यह है कि वह दिया हुआ अन्न पय है, क्योंकि मनुष्य और पशु दोनों उत्पन्न होते ही पय को ग्रहण करते हैं और उसी करके जीते हैं, और यही कारण है कि उत्पन्न हुये बच्चे को प्रथम घृत अवश्य चटाते हैं, अथवा माता के स्तन को पिलाते हैं, और पशुओं में उत्पन्न हुये बछरों को अतृणाद यानी तृण न खानेवाला कहते हैं. इसलिये सब जीव चाहे वह श्वास लेते हो चाहे न लेते हों उस पय के आश्रित हैं। इसी कारण जो आचार्य कहते हैं कि जो कोई निरंतर एक साल तक दूध करके होम करता है वह अकालमृत्यु को जीत लेता है सो केवल इतना ही नहीं समझना चाहिये बल्कि. यह समझना चाहिये कि जिस दिन वह दूध से हवन करता है उसी दिन अकालमृत्यु को जीत लेता है। अव प्रश्न यह है, कि वे अन्न खाये जाने . ।