पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१३८

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१२२ बृहदारण्यकोपनिषद् स० भावार्थ । यही तीन यानी वाणी, मन, प्राण, देवता, पितर, मनुष्य हैं, तिनमें से निश्चय करके वाणी देयताt, मन पितर ६, और प्राण मनुष्य हैं ॥ ६ ॥ मन्त्रः ७ पिता माता प्रजैन एव मन एवं पिना वाट्माता प्राणः प्रजा ॥ पदच्छेदः। पिता, माता, प्रजा, एते, एव. मनः, एव, पिना, याक, माता, प्राण:, प्रजा ।। अन्वय-पदार्थ। पते यह । एवम्ही + नया-नीन यानी बानी, मन, प्राण। माता-माता । पिता-पिता । प्रजा-पुत्र । तर उनमें में। मना-मन । एव-निश्चय करके । पिना=पिना । वाम्नागी। माता-माता प्राण-प्राण । प्रजापुन है। भावार्थ । हे सौम्य ! यही तीन यानी वाणी, मन, प्राण, माता, पिता, पुत्र हैं, तिनमें से निश्चय करके मन पिता है, वाणी माता है, प्राण पुत्र है ॥ ७ ॥ विज्ञातं विजिज्ञास्यमविज्ञातमेत एव यत्किच विजातं वाचस्तद्रूपं वाग्धि विज्ञाता वागेनं तद्भूत्वाऽवति ।। पदच्छेदः। विज्ञातम् , विजिज्ञास्यम् , अविज्ञातम्, एते, एव, यत्, M