पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/१५९

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अध्याय १ ब्राह्मण ५ जाननेवाला ।सः वह पुरुप । सर्वेषाम्-सव । भूतानाम्- प्राणियों का। श्रात्मा-प्रिय अत्मा । भवति होता है। + च%3 और । यथा-जैसे । एषा यह प्राण । देवता-देवता कल्याणरूप है । एवम्-तैसेही । सः वह भी कल्याणरूप । + भवति- होता है। + च-और । यथा जैसे । सर्वाणि-सब । भूतानि प्राणी । एताम् देवताम्-इस प्राणदेवता की । अवन्ति-रक्षा करते हैं । एवम् ह-वैसेही । सर्वाणि-सब । भूतानि-प्राणी । एवंविदम्-इस प्राणवेत्ता की भी । अवन्ति-रक्षा करते हैं। उ-और । यत्-जो। किंच-कुछ । इमाः यह । प्रजाः प्रजायें । शोचन्ति-शोक करती हैं यानी जो कुछ उनको दुःख पहुँचता है । तत्-वह सब दुःख । आसाम्-इन प्राओं के प्रात्मा के । अमा साथ । एव=ही । भवति होता है । परन्तु-परन्तु । अमुम्-इस प्राणवित् देव पुरुष को । पुण्यम् एव-सुख अवश्य । गच्छतिप्राप्त होता है । ह वैक्योंकि निश्चय करके । देवान्- देवों को । पापम्-पापजन्य दुःख । न-नहीं । गच्छति प्राप्त होता है। भावार्थ । हे सौम्य ! जब दैवीशक्तियुक्त प्राण जल अंश और चन्द्र अंश को त्याग करके इस कृतकृत्य पुरुष बिषे प्रवेश करता तब वही दैवीशक्तियुक्त प्राण है जो चलता है और नहीं भी चलता है सो ऐसा यह प्राण न नष्ट होता है, दुःखित होता है, प्राण की इस महिमा का जाननेवाला जो पुरुष है वह सब प्राणियों का प्रिय आत्मा होता है, और जैसे वह प्राण देवता कल्याणरूप है, तैसे ही वह पुरुष भी कल्याणरूप होता है, और जैसे सब प्राणी उस ->