पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२०६

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११० वृहदारण्यकोपनिषद् स० ताभिः उनके द्वारा । + बुद्धः श्रुन्द्रि के साथ । प्रत्यवसृप्य लौट कर । पुरीतति-सुपुम्ना नाड़ी में । शेते-सोता है यानी श्रानन्द भोगता है। + अत्र-इस विषय में । + दृष्टान्तः दृष्टान्त है कि । यथा जैसे । सा-कोई । कुमार:बालक । वा= अथवा । महाराजा-महाराजा । बाघथवा । महानाह्मण:- दिव्य ब्राह्मण । अानन्दस्य-प्रानन्द की। अतिघनीम-सीमा को। + गत्वा पाकर । शयीत-सोता है । एवम् एव इसी प्रकार । एप: यह जीवात्मा । एतत्-इस शरीर में। शेतन्यानन्दपूर्वक सोता है। भावार्थ । हे सौम्य ! फिर जब यह पुरुप सुषुप्ति में रहता है और जब किसी पदार्थ को नहीं जानता हैं, तब वह पुरुप सोया हुआ है ऐसा कहा जाता है, उस अवस्था में जो ये बहत्तर हजार नाड़ियां हृदय से निकलकर शरीर भर में व्याप्त है उनके साथ वह घूम फिर कर बुद्धि में सिमट कर शरीर में, अथवा सुपुम्ना नाड़ी में आनन्दभोक्ता हो जाता है। हे सौम्य ! इस विषय में लोग ऐसा दृष्टान्त देते हैं कि वह आत्मा ऐसा आनन्दपूर्वक सोता है जैसे कोई बालक अथवा महाराजा अथवा कोई दिव्य ब्राह्मण आनन्द में पड़ा हुआ. सोता है ॥ १६ ॥ मन्त्र: २० स यथोर्णनाभिस्तन्तुनोचरेद्यथाग्नेः क्षुद्रा विस्फु-. लिङ्गा व्युच्चरन्त्येवमेवास्मादात्मनः सर्वे प्राणाः सर्वे लोकाः सर्वे देवाः सर्वाणि भूतानि व्युच्चरन्ति तस्योप- .