पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२५०

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.. 1 . .. २३४ बृहदारण्यकोपनिषद् म० मोहम-भ्रम में डालनेवाली बान की । न-नहीं । प्रीमि- कहता हूँ । + किन्तु किन्न । अरे मैथि: । दम् मेरा यह कहना । श्रलम्पुर्ण । विज्ञानाय-ज्ञान के लिये । वैदी है। भावार्थ है प्रियदर्शन ! याज्ञवलय महाराज के वचन को नुनकर मैत्रेयी बोली कि जो आपने मुझसे कहा कि मरने पर इस जीवात्मा का कोई नाम नहीं रह जाता है, यह सुनकर बड़ा भ्रान्ति को प्राप्त हुई है, पसा मालूम होता है कि श्रापने मुझे भ्रम में डाल दिया है. तब वह प्रसिद्ध याज्ञवल्य महा- राज बोले कि हे प्रिय मैत्रयि ! ऐसा मत कहो, जो तुमसे कहा, वह यथार्थ कहा है, मेग उपदेश तुम्हारे प्रति भ्रम से निकालने का है न कि भ्रम में डालने का । जो कुछ मैंने तुमसे कहा है, वह तुम्हारे पूर्णज्ञान के लिये कहा है ।। १३ ।। मन्त्रः १४ यत्र हि दैतमित्र भवति तदितर इतरं जिननि तदि- तर इतरं पश्यति तदितर इतर मृगणोति तदिनर इतर- मभिवदति तदितर इतरं मनुते तदितर इतरं विजानाति यत्र वा अस्य सर्वमात्मत्राभूत्तत्केन के जिग्रेत्तत्केन के पश्येत्तत्केन कछ शृणुयात्तत्केन कमभिवदेत्तत्केन के मन्त्रीत तत्केन के विजानीयाद येनेदछ सर्व विजानाति तं केन विजानीयाट्रिज्ञातारमरे केन निजानीयादिति ॥ इति चतुर्थ ब्राह्मणम् ॥ ४ ॥ -