पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/२८२

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२६६ बृहदारण्यकोपनिषद् स० उस । इदम् मधु-इस मधुविधा को । श्रावणः प्रथर्ववेदी । दध्यङ्दथ्यपि । अश्विभ्याम्मश्विनीकुमारों के प्रति । उवाच-कहता भया । तत्-उसी । एतत्-इस मधुविद्या को। पश्यन्-देखता हुमा । ऋपिः-एक ऋपि । अवोचत् कहता भया कि । +सा=वह परमात्मा । रूपम् रूपम्-हर एक रूप में। प्रतिरूपः-प्रतिबिम्ब रूप । बभूव-होता भया। + किमर्थ- मिदम्-यह प्रतिबिम्वरूप क्यों होता भया । + उच्यते-उत्तर यह कहा आता है कि । अस्य इस प्रास्मा का । तत्वह। रूपम् प्रतिविम्बरूप । प्रतिचक्षणाय-श्रात्मत्व सिद्धि के लिये। + अस्ति है यानी यदि प्रतिबिम्ब न हो तो बिम्ब का ज्ञान नहीं हो सकता है। इन्द्रः परमात्मा । मायाभिः नाम रूप उपाधि करके । पुरुरूपःबहुत रूपवाला । ईयते-जाना जाता है। यथा जैसे । + रथे रथ में । युक्ताः-लगे हुये । हरया-घोड़े। + रथिनम् रथी को । + स्वदेशम् अपने नेत्र के सामने के देश की तरफ । + नयन्ति ले जाते हैं। + तथा-तैसे ही। अस्य-इम प्रत्यगात्मा को। + शरीरे-शरीर में । युक्ताः-युक्त हुई । हरया-विषयहरण करनेवाली इन्द्रियां भी । + नयन्ति: ले जाती हैं। ते-वे इन्द्रियां ।+ यदि-अगर । दश शताब्दश सौ हैं तो । इति=उतना ही। अयम् यह प्रत्यगात्मा भी । वै- निश्चय करके । अस्ति है । च-पौर । + यदि-अगर । + ते-वे इन्द्रियां। दशसहस्राणि-दश हज़ार में तो । इतिउतनाही । अयम्-यह प्रत्यगात्मा भी है। च-पौर । + यदि-अगर । ते-वे इन्द्रियां । वहनि-बहुत । चौर । अनन्तानि-असंख्य हैं तो। इति-उतना ही । अयम्-यह प्रत्यगात्मा भी है। + अरे मैत्रेयि= हे मैत्रेयि !तत्-सोई । एतत्-यह । ब्रह्म-ना। अनपरम्-नाति रहित है। अनन्तरम्-व्यवधानरहित है। वाह्यम्-सर्वव्यापी