पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३०६

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२१२ बृहदारण्यकोपनिषद् स० यदि इन तीनों ऋचाओं करके यज्ञ किया जाय तो उनसे क्या प्राप्ति होगी? याज्ञवल्क्य उत्तर देते हैं कि, हे अश्वल! पुरोनुवाक्या ऋचा से यजमान पृथ्वीलोक को जीतता है, याज्या ऋचा करके वह अन्तरिक्षलोक को जीतता है, और शस्था अचा करके धुलोक को प्राप्त होता है, ऐसा सुनकर अश्वल चुप होगया ॥ १० ॥ इति प्रथमं ब्राह्मणम् ॥१॥ 3 अथ द्वितीयं ब्राह्मणम् । मन्त्रः १ अथ हैनंजारत्कारव आर्तभागः पप्रच्छ याज्ञवल्क्येति होचाच कति ग्रहाः कत्यतिग्रहा · इति अष्टौ ग्रहा अष्टावतिग्रहा इति ये तेऽष्टौ ग्रहा 'अष्टावतिग्रहाः"कतमे त इति ॥ पदच्छेदः। ! i अथ, ह, : एनम् , जारकारवः, आतभागः,,: पप्रच्छ, याज्ञवल्क्य, इति, इ, उवाच, कति, ग्रहाः, कति, अतिग्रहाः, इति, अष्टौ, :ग्रहाः, अष्टौ, अतिग्रहाः, इति, ये, ते, अष्टौ, प्रहार, अष्टौ, अतिग्रहाः, कतमे, ते, इति । अन्वय-पदार्थ। "अथ ह अश्वल के चुप होने पर । एनम् ह उस प्रसिद्ध याज्ञवल्क्य से । जरत्कारवा जरत्कारु के वंश का । श्रातभागः