पृष्ठ:बृहदारण्यकोपनिषद् सटीक.djvu/३२०

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२६८ बृहदारण्यकोपनिषद् स० . - हि, कामान मनो चै ग्रहः स कामेनातिग्राहेण गृहीतो मनसा हि कामान्कामयते। पदच्छेदः। मनः, वै, ग्रहः, स:, कामेन, अतिराहेण, गृहीतः, मनसा, कामयते ॥ अन्वय-पदार्थ । मनः मन । चै-निश्चय करके । ग्रह: ग्रह है। सः वही मन । कामेनकामनारूप। अतिग्राहेण अतिग्रह यानी विपय करके । गृहीता गृहीत है । हिक्योंकि ! + लोकः-लोक । मनसा- मन करके ही। कामान् इच्छित पदार्थों की । कामयते इच्छा करता है। भावार्थ । मन इन्द्रिय ग्रह है, कामरूप उसका अतिग्रह है, क्योंकि कामना करके मन गृहीत होरहा है, यानी मन से ही अनेक कामना पुरुष करता है, चूंकि विषय की कामना में पुरुष फंसा रहता है, इस कारण मन को ग्रह यानी बांधनेवाला कहा है ॥ ७॥ हस्तौ वै ग्रहः स कर्मणातिग्राहेण गृहीतो हस्ताभ्याई हि कर्म करोति ॥ पदच्छेदः। हस्तौ, वै, ग्रहः, सः, कर्मणा, अतिग्राइण, गृहीतः; हस्ताभ्याम् , हि, कर्म, करोति ॥